*🥃 मैं औऱ मेरी तनहाई,*

*अक्सर ये बाते करते है..*

*ज्यादा पीऊं या कम,*

*व्हिस्की पीऊं या रम।*
*या फिर तोबा कर लूं..*

*कुछ तो अच्छा कर लूं।*

*हर सुबह तोबा हो जाती है,*

*शाम होते होते फिर याद आती है।*

*क्या रखा है जीने में, असल मजा है पीने में।*
*फिर ढक्कन खुल जाता है,*

*फिर नामुराद जिंदगी का मजा आता है।*

*रात गहराती है,*

*मस्ती आती है।*

*कुछ पीता हूं,*

*कुछ छलकाता हूं।*
*कई बार पीते पीते,*

*लुढ़क जाता हूं।*

*फिर वही सुबह,*

*फिर वही सोच।*

*क्या रखा है पीने में,*

*ये जीना भी है कोई जीने में!*

*सुबह कुछ औऱ,*

*शाम को कुछ औऱ।*
*थोड़ा गम मिला तो घबरा के पी गए,*

*थोड़ी ख़ुशी मिली तो मिला के पी गए,*

*यूँ तो हमें न थी ये पीने की आदत…*

*शराब को तनहा देखा तो तरस खा के पी गए।*
*मधुशाला*