Shayari
काशी के वासी रहें हम हो गए अनाथ
काशी के वासी रहें, हम हो गए अनाथ,
गंगा मैया छुट गयीं, छुटे भोले नाथ |
काशी के ढ़ग छुट गए,चाई मुग़ल सरायं
जरा ध्यान दे जेब पर माल हजम कर जाए |
रांड सांड सीढ़ी छुटल, सन्यासी सतसंग,
गली घाट सब छुट गयल, होए गए मतिमंद |
पंडा के छतरी छुटल, गंगा जी के नीर,
चना चबैना भी छुटल, फूट गयल तक़दीर |
बालू के रेता छुटल, और नैया के सैर,
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर |
आय बसें परदेश में, चिकना होगया चाँद,
लडकन के महकै लगल, घर बर्धन के नाद |
ना केहू के खबर बा, ना केहू के हाल,
सोचत सोचत रात दिन हो जाए बेहाल |
के के बनारस के मिस्स करत हव ।।