जब ठेस लगती है….

लोग डूबते हैं तो समंदर को दोष देते हैं,
मंजिल न मिले तो मुकद्दर को दोष देते हैं,
खुद तो संभल कर चल नहीं सकते,
जब ठेस लगती है तो पत्थर को दोष देते हैं।

प्यास दिल की….

प्यास दिल की बुझाने वो कभी आया भी नहीं,
कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं,
बेरुखी इससे बड़ी और भला क्या होगी,
एक मुद्दत से हमें उसने सताया भी नहीं।

तुमने चाहा ही नहीं…

तुमने चाहा ही नहीं ये हालात बदल सकते थे,
तुम्हारे आँसू मेरी आँखों से भी निकल सकते थे,
तुम तो ठहरे रहे झील के पानी की तरह बस,
दरिया बनते तो बहुत दूर निकल सकते थे।

भुला क्यों नहीं देते….

हमसे प्यार नहीं है तो भुला क्यों नहीं देते,
खत किसलिए रखे हैं जला क्यों नहीं देते,
किस वास्ते लिखा है हथेली पर मेरा नाम,
मैं हर्फ़ गलत हूँ तो मिटा क्यों नहीं देते।

तड़पाया नहीं करते….

यूँ दूर रहकर दूरियों को बढ़ाया नहीं करते,
अपने दीवानों को ऐसे सताया नहीं करते,
हर वक़्त बस जिसे तुम्हारा हो ख्याल,
उसे अपनी आवाज़ के लिए तड़पाया नहीं करते।