काशी के वासी रहें, हम हो गए अनाथ,

गंगा मैया छुट गयीं, छुटे भोले नाथ |
काशी के ढ़ग छुट गए,चाई मुग़ल सरायं

जरा ध्यान दे जेब पर माल हजम कर जाए |
रांड सांड सीढ़ी छुटल, सन्यासी सतसंग,

गली घाट सब छुट गयल, होए गए मतिमंद |
पंडा के छतरी छुटल, गंगा जी के नीर,

चना चबैना भी छुटल, फूट गयल तक़दीर |
बालू के रेता छुटल, और नैया के सैर,

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर |
आय बसें परदेश में, चिकना होगया चाँद,

लडकन के महकै लगल, घर बर्धन के नाद |
ना केहू के खबर बा, ना केहू के हाल,

सोचत सोचत रात दिन हो जाए बेहाल |

के के बनारस के मिस्स करत हव  ।।

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